इतिहास
रियासत काल में सर्वाधिक बड़े क्षेत्रफल वाली रियासत खैरागढ़ – नागवंशी राजवंश के संस्थापक लक्ष्मीनिधिराय के वंशज खड़गराय द्वारा राजधानी खोलवा के स्थान पर पिपरिया, मुस्का और आमनेर नदी के संगम पर बसाए गए नगर खैरागढ़ करने एवं खैर वृक्षों की अधिकता के कारण इसका नाम खैरागढ़ पड़ा। खैरागढ़ एक राज्य के रूप में ब्रिटिश भारत के पूर्व मध्य प्रांतों का एक सामंती राज्य था।
जिला खैरागढ़-छुईखदान-गण्डई में स्थित गंगई माता मंदिर, मां नर्मदा मंदिर, मां करेला भवानी मंदिर, जय डोंगेश्वर महादेव मंदिर-चोड़राधाम, पुरातात्विक स्थल – कल्चुरियों द्वारा निर्मित देउर शिव मंदिर एवं फणीनागवंशी राजाओं द्वारा बनवाया गया घटियारी शिव मंदिर, बैताल रानी घाटी, छिंदारी बांध (पिपरिया जलाशय), पैलीमेटा बांध (सुरही जलाशय), मंडिपखोल गुफा, मोटियारी घाट, राजा का महल – कमल विलास पैलेस, दंतेश्वरी माता मंदिर, बाबा रूक्खड़ स्वामी मंदिर, मां चेन्द्री दाई चंडी मंदिर नवागांव, नथेला डैम, प्रधान पाठ बैराज जैसे दर्शनीय स्थल इसे धार्मिक, पर्यटन एवं पुरातात्विक दृष्टिकोण से भी समृद्ध बनाते हैं।
द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बखशी की जन्मस्थली खैरागढ़ होने के साथ ही उनकी प्राथमिक शिक्षा का केन्द्र भी खैरागढ़ ही है। छ.ग. की लोक गायिका पद्मश्री मोक्षदा चंद्राकर (ममता चंद्राकर) इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ की वर्तमान कुलपति हैं। वहीं इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय के प्रथम उपकुलपति खयाति प्राप्त संगीतज्ञ पद्मभूषण डॉ. कृष्ण नारायण रातनजनकर जी थे। प्रखयात लेखक एवं कवि डॉ जीवन यदु (राही) खैरागढ़ मूल के ही हैं।
खैरागढ़ क्षेत्र में चूना पत्थर गौण खनिज उपलब्ध हैं, इसके साथ ही क्वार्टजाईट, सिलिका, सेण्ड, ईंट, मिट्टी जैसे खनिज उपलब्ध हैं। वहीं छुईखदान क्षेत्र में मुखय खनिज चूना पत्थर उपलब्ध हैं।